वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज :- लखनऊ पीठ ने दुर्गापूजा व रामायण के लिए एक लाख रुपये देने के खिलाफ याचिका खारिज करते हुए कहा कि राज्य के इस आदेश से किसी एक धर्म को बढ़ावा नहीं मिलता है। याचिका दखल देने योग्य नहीं है।
उत्तर प्रदेश के जिलों में दुर्गापूजा व रामायण पाठ के लिए एक लाख रुपये देने के राज्य सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने सरकार के आदेश को उचित ठहराते हुए कहा कि याची ने इसको गलत तरह से पढ़ा और समझा है। यह आदेश राज्य की ओर से किसी भी धर्म या धार्मिक गतिविधि को बढ़ाने वाला नहीं है। ऐसे में याचिका दखल देने योग्य नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने दिया।
कोर्ट इस मामले में स्थानीय अधिवक्ता मोतीलाल यादव की तरफ से दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याची ने राज्य सरकार की तरफ से बीते 10 मार्च को जारी आदेश को चुनौती देते हुए कोर्ट से इसे निरस्त करने का आग्रह किया था। उसका कहना था कि राज्य सरकार, कानूनन ऐसे किसी धार्मिक आयोजन के लिए सरकारी कोष से पैसा उपलब्ध नहीं करवा सकती है।
बीते मार्च माह में प्रदेश के सभी मंडलायुक्तों व डीएम को भेजे गए इस आदेश में 22 मार्च से 30 मार्च के बीच दुर्गा पूजन व अखंड रामायण पाठ अदि के कार्यक्रम, जनपद, तहसील व विकास खंड स्तर पर समितियां गठित कर संपन्न कराए जाने के लिए कहा गया था। इसके लिए कार्यक्रम में प्रस्तुति करने वाले कलाकारों को मानदेय देने के लिए प्रत्येक जिले को एक लाख रुपये की धनराशि, जिला पर्यटन एवं सांस्कृतिक परिषद, संस्कृति विभाग की तरफ से उपलब्ध कराई जानी थी।
याची का कहना था कि सरकार संविधान के अनुच्छेद 27 के तहत सरकार ऐसे धार्मिक आयोजनों के लिए जनकोष से धन का उपयोग नहीं कर सकती है। साथ ही यह आदेश भेदभाव पैदा करने वाला है क्योंकि समाज में अन्य धर्मों के लिए इसमें कोई प्रावधान नहीं किया गया है। इसका विरोध करते हुए सरकारी अधिवक्ता ने कहा कि प्रश्नगत आदेश किसी धार्मिक गतिविधि को बढ़ाना देने वाला नहीं था। यह सिर्फ सांस्कृतिक कार्यों को संचालित करने के लिए ही जारी किया गया था,जो राज्य का कर्तव्य है।